हरिद्वार। प्राचीन छड़ी यात्रा गुप्तकाशी में जूना अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय सभापति, पवित्र छड़ी के प्रमुख श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज के नेतृत्व में पौराणिक काशी विश्वनाथ मन्दिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंची। जहां तीर्थ पुरोहितो तथा वैदिक ब्राहमणों पवित्र छडी का पूजन किया गया तथा काशी विश्वनाथ भगवान का अभिषेक कर विश्व कल्याण, कोरोना समाप्ति तथा देश में सुख-समृद्वि व शांति की कामना के लिए प्रार्थना की गयी। श्रीमहंत हरिगिरि ने बताया कि गुप्तकाशी मन्दिर त्रेतायुग का पौराणिक काल का मन्दिर है। इसे छोटा काशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि महाभारत के युद्व के पश्चात पांडव भगवान शिव से मिलकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते थे। लेकिन सहोदर भ्राताओं कौरवों के वध से खिन्न भगवान शिव पांडवों से बचकर बैल का रूप धारण कर वाराणसी से गुप्तकाशी पहुच गए। लेकिन भीम ने उनकी पंूछ पकड़ ली। परन्तु भगवान शिव का धड़ गुप्तकाशी में रह गया तथा मुंह पशुपतिनाथ नेपाल में जा निकला। तभी से गुप्तकाशी में भगवान शिव के धड़ की पूजा अर्चना होती है। गुप्तकाशी पंच केदारों में से एक है। अन्र्तराष्ट्रीय सभापति पवित्र छड़ी के प्रमुख श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने बताया खराब मौसम के कारण इस बार छड़ी यात्रा में काफी व्यवधान आ रहा है। गुप्तकाशी से पवित्र छड़ी उखीमढ पहुची। जहां प्रमुख पुजारी वागेशलिंग महाराज तथा आचार्य विश्वमोहन जमलोकी ने पवित्र छड़ी का पूजन किया। उखीमढ में भगवान केदारनाथ सर्दियों में जब कपाट बंद होते है तो विश्राम करते है और शीतकाल में उनके विग्रह की पूजा अर्चना उखीमठ में की जाती है। उन्होने बताया यहां से पवित्र छड़ी तुंगनाथ महादेव तथा अनुसूइया माता मन्दिर दर्शन के लिए जानी थी, लेकिन सड़क मार्ग अवरूद्व होने के कारण पवित्र छड़ी वहां न जा सकी और उखीमठ से चमोली के लिए रवाना हो गयी। पवित्र छड़ी जत्थे में शामिल छड़ी महंत शिवदत्त गिरि, महंत पुष्कराज गिरि, महंत अजय पुरी, विशम्भर भारती, महंत महादेवानंद गिरि, महंत मोहनानंद गिरि, महंत नितिन गिरि, महंत परमानंद गिरि, महंत रामगिरि, महंत गुप्त गिरि, महंत केदार भारती, महंत पारसपुरी, महंत भावपुरी आदि के नेतृत्व में साधुओ की जमात रात्रि विश्राम के लिए चमोली पहुची।
हरिद्वार। कुंभ में पहली बार गौ सेवा संस्थान श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा राजस्थान की ओर से गौ महिमा को भारतीय जनमानस में स्थापित करने के लिए वेद लक्ष्णा गो गंगा कृपा कल्याण महोत्सव का आयोजन किया गया है। महोत्सव का शुभारंभ उत्तराखंड गौ सेवा आयोग उपाध्यक्ष राजेंद्र अंथवाल, गो ऋषि दत्त शरणानंद, गोवत्स राधा कृष्ण, महंत रविंद्रानंद सरस्वती, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने किया। महोत्सव के संबध में महंत रविंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य गौ महिमा को भारतीय जनमानस में पुनः स्थापित करना है। गौ माता की रचना सृष्टि की रचना के साथ ही हुई थी, गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सभी प्रकार के हानिकारक विषाणुओ को समाप्त करता है, गो पंचगव्य का प्रयोग करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर मजबूत होता है रोगों से लड़ने की क्षमता कई गुना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैश्विक महामारी ने सभी को आतंकित किया है। परंतु जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। उन्होंने गो पंचगव्य की विशेषताएं बताते हुए कहा ...
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