धर्मध्वजा रोहण से ही होता कुंभ मेले का शुभारंभ-श्रीमहंत नरेंद्र गिरी
हरिद्वार। कोविड़ को लेकर अनिश्चितताओं के बीच शनिवार को कुम्भ मेला प्रशासन सभी 13 अखाड़ो के प्रतिनिधियों को लेकर देहरादून के छिद्दरवाला के जंगलों में पहुँचा। जहाँ सभी 13 अखाड़ो ने अपनी अपनी धर्मध्वजा की लकड़ी के लिए पेड़ो का चिह्नीकरण किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुम्भ की शुरुआत अखाड़ों धर्मध्वजा के स्थापना-पूजन के साथ ही होती है। आज इस अवसर पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने बताया कि धर्मध्वजा की स्थापना के बाद कि अखाड़ो में कुम्भ की शुरुआत मानी जाती है जिसके लिए आज सभी 13 अखाड़े कुम्भ मेला प्रशासन के साथ जंगल मे लकड़ी चुनने के लिये आये है और सभी 13 अखाड़ो ने अपनी अपनी पसंद की लकड़ी के लिए पेड़ो का चयन कर किया है और पेड़ो पर अपने अखाड़ो के निशान लगाए है। जिसके बाद पेड़ो का पूजन भी किया गया है। कहा कि धर्मध्वजा स्थापना से ही कुंभ मेला का शुभारंभ हो जाता है। स्थापित धर्मध्वजा के नीचे ही नागा सन्यासियों को दीक्षा दी जाती है। उन्होंने कहा कि अखाड़ों की अपनी परंपरांओं के अनुसार बावन हाथ की लंबाई वाली लकड़ी के साथ साथ धर्मध्वजा स्थापित की जाती है। मेला प्रशासन धर्मध्वजा के चयन के लिए छिद्दरवाला में मौेजूद रहा। मेला अधिकारी दीपक रावत की मौजूदगी में तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने धर्मध्वजा का चयन किया। मेला अधिकारी दीपक रावत ने कहा कि धर्मध्वजा की लकड़ी के चयन के लिए छिद्दरवाला के जंगलों में संतों के साथ पहुंचे हैं। प्रत्येक कुंभ में मेला प्रशासन द्वारा धर्मध्वजा के लिए अखाड़ों को लकड़ी उपलब्ध करायी जाती है। अखाड़ों की परंपरा के अनुसार ही लकड़ी का चयन किया गया है। जल्द ही यातायात पुलिस के सहयोग से सभी अखाड़ों में धर्मध्वजा के लिए चयनित लकड़ी पहुंचा दी जाएगी। इस दौरान श्रीमहंत रविन्द्रपुरी, श्रीमहंत रामरतन गिरी, श्रीमहंत राजेंद्रदास, श्रीमहंत धर्मदास, श्रीमहंत किशनदास, श्रीमहंत सत्यगिरी, श्रीमहंत साधनानंद, महंत रविन्द्रपुरी, महंत जगतार मुनि, श्रीमहंत गिरजानंद सरस्वती, महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री, श्रीमहंत महेश्वरदास, मुखिया महंत दुर्गादास, महंत प्रेमदास, आदि सहित मेला प्रशासन व वन विभाग के अधिकारी मौजूद रहे। वही इस अवसर पर मेला अधिकारी दीपक रावत ने कहा कि परंपराओं के अनुसार अखाड़ो के लिए आज लकड़ी का चयन हो गया है जिसके बाद अखाड़ो की सहमति के अनुसार पेड़ की कटाई कर, धर्मध्वजा की लकड़ी अखाड़ो में पहुचाई जाएगी।
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