भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है रक्षाबंधन पर्व-स्वामी कृष्णानंद
हरिद्वार। ब्रह्मलीन स्वामी दीप्तानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी हरिहरानंद महाराज की पुण्यतिथी पर सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूषों के सानिध्य में समारोह पूर्वक मनायी गयी। भूपतवाला स्थित दीप्तानंद आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी कृष्णानंद महाराज के संयोजन में आयोजित समारोह में संत समाज ने ब्रह्मलीन स्वामी दीप्तानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी हरिहरानंद महाराज को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। समारोह को संबोधित करते हुए भारत माता मंदिर के महंत महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी दीप्तानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी हरिहरानंद सिद्ध महापुरूष थे। सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार प्रसार में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। महामंडलेश्वर स्वामी कृष्णानंद जिस प्रकार अपने गुरूजनों के दिखाए मार्ग पर चलते हुए उनके अधूरे कार्यो को आगे बढ़ा रहे हैं। उससे युवा संतों को प्रेरणा लेनी चाहिए। महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरी एवं महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद ने कहा कि सनातन धर्म संस्कृति में गुरू का स्थान सर्वोच्च है और स्वामी कृष्णानंद का अपने गुरूओं के प्रति निष्ठाभाव सभी के लिए प्रेरणादायी है। गुरूओं की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए संत समाज की सेवा और सनातन धर्म संस्कृति संरक्षण संवर्द्धन में स्वामी कृष्णानंद अहम योगदान कर रहे हैं। संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी कृष्णानंद महाराज ने कहा कि पूज्य ब्रह्मलीन गुरूजनों स्वामी दीप्तानंद महाराज एवं स्वामी हरिहरानंद महाराज से प्राप्त ज्ञान व शिक्षाओं के अनुसरण और संत समाज के आशीर्वाद से गुरू परंपरांओं को आगे बढ़ाते हुए समाज को धर्म व अध्यात्म की प्रेरणा देना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। उन्होंने सभी को रक्षाबंधन की बधाई देते हुए कहा कि भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन सनातन परंपरांओं का महत्वपूर्ण पर्व है। समारोह की अध्यक्षता कर रहे महंत देवानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी दीप्तानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी हरिहरानंद संत समाज के प्रेरणा स्रोत थे। स्वामी कृष्णानंद महाराज सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें गुरूजनों के रूप में ब्रह्मलीन स्वामी दीप्तानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी हरिहरानंद महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर महंत देवानंद सरस्वती,महंत प्रबोधानंद गिरी,महंत ललितानंद गिरी, स्वामी अनंतानंद, स्वामी चिदविलासानंद, स्वामी गोपालानंद, स्वामी अमृतानंद,स्वामी प्रकाशानंद, महंत अरूण दास, महंत नारायण दास पटवारी,महंत गोविंद दास,महंत विष्णु दास,महंत सूरज दास, महंत हरिदास, महंत प्रेमदास सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महंत और श्रद्धालुजन उपस्थित रहे।
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