हरिद्वार। श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि शरद पूर्णिमा शीतलता और सात्विकता की प्रतीक है जो ऋतु परिवर्तन का संकेत देकर समाज और सृष्टि के वातावरण को बदलती है। वे आज विष्णु गार्डन स्थित श्रीगीता विज्ञान आश्रम में महर्षि वाल्मीकि जयंती एवं शरद पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने आए श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। चंद्र ग्रहण और शरद पूर्णिमा के उपलक्ष में गीता ज्ञान की दैनिक व्याख्यानमाला को विशिष्टता प्रदान करते हुए उन्होंने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम के जिन जीवन आदर्शो को अपने ग्रंथ रामायण के माध्यम से समाज को समर्पित किया वे सदैव प्रासंगिक रहेंगे। चंद्र ग्रहण को खगोलीय घटना बताते हुए उन्होंने कहा कि यह सृष्टिचक्र है और सौरमंडल के गृह लगातार सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते रहते हैं। सृष्टि के सभी ग्रह सूर्य से प्रकाशमान होते हैं और सूर्य ही सृष्टि के प्रकट देव हैं। सूर्य और चंद्रमा के बीच में जब पृथ्वी आ जाती है तो चंद्र ग्रहण का योग बनता है जो आज 28,29 की रात्रि में मध्य रात्रि के पश्चात बन रहा है। ग्रहण कल के वैज्ञानिक कारकों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ग्रहण काल में कुछ अनिष्ट योग भी बनते हैं और अनिष्टकारी गैसें भी उत्सर्जित होती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। ग्रहण काल में कुछ भी खाना निषिद्ध होता है जबकि ग्रहण काल के पश्चात गंगा स्नान करना तन और मन सभी के लिए उत्तम और सुखद फलदायी होता है। शरद पूर्णिमा पर किए जाने वाले स्नान और दान का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि तीर्थस्थल और गुरुगद्दी पर किए गए दान का पुण्यफल सहस्र गुना अधिक फलदायी होता है। इस अवसर पर कई प्रांतों से आए श्रद्धालुओं के साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय भक्तगण भी उपस्थित थे।
हरिद्वार। कुंभ में पहली बार गौ सेवा संस्थान श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा राजस्थान की ओर से गौ महिमा को भारतीय जनमानस में स्थापित करने के लिए वेद लक्ष्णा गो गंगा कृपा कल्याण महोत्सव का आयोजन किया गया है। महोत्सव का शुभारंभ उत्तराखंड गौ सेवा आयोग उपाध्यक्ष राजेंद्र अंथवाल, गो ऋषि दत्त शरणानंद, गोवत्स राधा कृष्ण, महंत रविंद्रानंद सरस्वती, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने किया। महोत्सव के संबध में महंत रविंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य गौ महिमा को भारतीय जनमानस में पुनः स्थापित करना है। गौ माता की रचना सृष्टि की रचना के साथ ही हुई थी, गोमूत्र एंटीबायोटिक होता है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सभी प्रकार के हानिकारक विषाणुओ को समाप्त करता है, गो पंचगव्य का प्रयोग करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर मजबूत होता है रोगों से लड़ने की क्षमता कई गुना बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैश्विक महामारी ने सभी को आतंकित किया है। परंतु जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है। कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। उन्होंने गो पंचगव्य की विशेषताएं बताते हुए कहा ...
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