हरिद्वार। मानव उत्थान सेवा समिति व श्री प्रेमनगर आश्रम के तत्वावधान में देहरादून हरिद्वार हाईवे स्थित चमगादड़ टापू पार्किंग मैदान में आयोजित विशाल सद्भावना सम्मेलन के दूसरे दिन उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सुविख्यात समाजसेवी व आध्यात्मिक गुरु श्री सतपाल जी महाराज ने कहा कि अध्यात्मवादी संत किसी से भेद भाव नहीं करते हैं। वह कभी किसी से उसकी जाति नहीं पूछते हैं बल्कि जिज्ञासु को आत्मज्ञान की दीक्षा देकर भक्ति मार्ग में चलने की प्रेरणा देते हैं और उसका कल्याण करते हैं। श्री महाराज जी ने आगे कहा कि दुनिया के जितने भी भक्त हैं,राम भक्त राम का प्रसाद लेते हैं, पर यहां तो प्रभु राम भिलनी का प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। भिलनी के जो झूठे बेर हैं, उनको खा रहे हैं परंतु भिलनी ने इस भावना से बेरों को नहीं खाया कि पहले मैं खा लूं,तब भगवान को दूं। उसने इस भावना से बेरों को चखा की कोई बैर खट्टा या कड़वा ना हो। मेरे प्रभु को मीठे बेर ही मिले, तो ऐसी भावना से उसने बेरों को चखा और भगवान के आगे समर्पित किया केवल मीठे बेर ही समर्पित किया तो भगवान ने उनको सहर्ष ग्रहण किया। भगवान उन ऋषि मुनियों से कहते हैं जो उनका सत्कार करने आए थे कि पंपा सरोवर बड़ा गंदा हो गया है, तुम इतने विद्वान हो ज्ञानी हो, आपने साधना की है, आप अपने चरण पंपा सरोवर में डालो तो पवित्र हो जाएगा। सब ऋषियों ने अपना सम्मान समझा और अपने चरण डालें पर पंपा सरोवर पवित्र नहीं हुआ तब प्रभु राम ने अपने चरण डाले,तो भी पंपा सरोवर पवित्र नहीं हुआ। तब प्रभु राम भिलनी से कहते हैं कि भिलनी ! अब हम सब ने तो अपने पैर डाल दिए हैं और हमारे स्पर्श से ये पंपा सरोवर पवित्र नहीं हुआ,अब तुम अपने चरण डालो। तो भिलनी पहले बहुत सकुचाती है,प्रभु मैं तो बहुत दीन-हीन हूँ,भगवान ने जब बार-बार आग्रह किया और भिलनी ने अपने चरण डाले तो सारा पम्पा सरोवर पवित्र हो गया। बड़ी-बड़ी तपस्या करने वाले ऋषि ज्ञानी विद्वान लोग एक दूसरे से ईर्ष्या करते थे, लेकिन भिलनी के मन में सेवा का पवित्र भाव था। इसलिए उसके चरण डालने से पंपा सरोवर पवित्र हो गया। श्री महाराज ने कहा कि आप मेरे शब्दों को सुन रहे हैं। यह सारा जो वाइब्रेशन है यह अपने आप में स्पंदन है तो हमारे संत कहते हैं कि एक ऐसा आदि स्पंदन है जिससे सारा स्पंदन प्रारंभ हुआ,आदि नाम जिसको कहा गया जो जर्रे-जर्रे के अंदर है। आपने देखा होगा सबसे छोटे पार्टिकल में जिसको एटम कहा जाता है,उसके बीच में न्यूक्लियस है,उसके चारों तरफ इलेक्ट्रॉन परिक्रमा करते हैं,उसके बीच में न्यूट्रॉन है और प्रोटोन है। भगवान भी गीता में यही कहते है कि हे अर्जुन! तीन गुणों से यह सारा संसार बना है। इस सारे संसार के अंदर फंडामेंटल पार्टिकल्स हैं। वह क्या है- इलेक्ट्रॉन,प्रोटॉन,न्यूट्रॉन। इसी के वृद्धि और कमी होने से सारे आपके एलिमेंट्स बनते चले जाते हैं। प्रारंभ में हाइड्रोजन बना हाइड्रोजन के एच में एक और जोड़ा तो हीलियम बन गया। आप जैसे-जैसे जोड़ते चले जाएंगे,अनेक तत्वों की रचना होती चली जाएगी। ऐसे ही सबका आधारभूत जो हमारे अंदर नाम है। जिसको कहा है कि वह आदि नाम है,उस आदि नाम का लोग गुप्त जाप करते हैं,उसे कोई बिरला ही समझता है। इसलिए संतो के पास जाकर उस आदि नाम को जानना चाहिए। उसके सिमरन से ही हमारा कल्याण संभव है। सम्मेलन को संबोधित करते हुए विभुजी महाराज ने कहा कि आज समाज में विकृति आने से हम मानव होते हुए भी मानवता को नहीं समझते हैं। मानवता के प्रेम को करुणा को नहीं समझते और धर्म को लेकर विवाद करते हैं,तो धर्म के मूल को तो किसी ने समझा ही नहीं,इसको समझने के लिए हमें संतों के शरण में आना होगा तभी हम धर्म की मूल भावना को समझेंगे तब ही समाज में मानवता विकसित होगी। मंच संचालन महात्मा हरिसंतोषानंद ने किया।
हरिद्वार। मानव उत्थान सेवा समिति व श्री प्रेमनगर आश्रम के तत्वावधान में देहरादून हरिद्वार हाईवे स्थित चमगादड़ टापू पार्किंग मैदान में आयोजित विशाल सद्भावना सम्मेलन के दूसरे दिन उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सुविख्यात समाजसेवी व आध्यात्मिक गुरु श्री सतपाल जी महाराज ने कहा कि अध्यात्मवादी संत किसी से भेद भाव नहीं करते हैं। वह कभी किसी से उसकी जाति नहीं पूछते हैं बल्कि जिज्ञासु को आत्मज्ञान की दीक्षा देकर भक्ति मार्ग में चलने की प्रेरणा देते हैं और उसका कल्याण करते हैं। श्री महाराज जी ने आगे कहा कि दुनिया के जितने भी भक्त हैं,राम भक्त राम का प्रसाद लेते हैं, पर यहां तो प्रभु राम भिलनी का प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। भिलनी के जो झूठे बेर हैं, उनको खा रहे हैं परंतु भिलनी ने इस भावना से बेरों को नहीं खाया कि पहले मैं खा लूं,तब भगवान को दूं। उसने इस भावना से बेरों को चखा की कोई बैर खट्टा या कड़वा ना हो। मेरे प्रभु को मीठे बेर ही मिले, तो ऐसी भावना से उसने बेरों को चखा और भगवान के आगे समर्पित किया केवल मीठे बेर ही समर्पित किया तो भगवान ने उनको सहर्ष ग्रहण किया। भगवान उन ऋषि मुनियों से कहते हैं जो उनका सत्कार करने आए थे कि पंपा सरोवर बड़ा गंदा हो गया है, तुम इतने विद्वान हो ज्ञानी हो, आपने साधना की है, आप अपने चरण पंपा सरोवर में डालो तो पवित्र हो जाएगा। सब ऋषियों ने अपना सम्मान समझा और अपने चरण डालें पर पंपा सरोवर पवित्र नहीं हुआ तब प्रभु राम ने अपने चरण डाले,तो भी पंपा सरोवर पवित्र नहीं हुआ। तब प्रभु राम भिलनी से कहते हैं कि भिलनी ! अब हम सब ने तो अपने पैर डाल दिए हैं और हमारे स्पर्श से ये पंपा सरोवर पवित्र नहीं हुआ,अब तुम अपने चरण डालो। तो भिलनी पहले बहुत सकुचाती है,प्रभु मैं तो बहुत दीन-हीन हूँ,भगवान ने जब बार-बार आग्रह किया और भिलनी ने अपने चरण डाले तो सारा पम्पा सरोवर पवित्र हो गया। बड़ी-बड़ी तपस्या करने वाले ऋषि ज्ञानी विद्वान लोग एक दूसरे से ईर्ष्या करते थे, लेकिन भिलनी के मन में सेवा का पवित्र भाव था। इसलिए उसके चरण डालने से पंपा सरोवर पवित्र हो गया। श्री महाराज ने कहा कि आप मेरे शब्दों को सुन रहे हैं। यह सारा जो वाइब्रेशन है यह अपने आप में स्पंदन है तो हमारे संत कहते हैं कि एक ऐसा आदि स्पंदन है जिससे सारा स्पंदन प्रारंभ हुआ,आदि नाम जिसको कहा गया जो जर्रे-जर्रे के अंदर है। आपने देखा होगा सबसे छोटे पार्टिकल में जिसको एटम कहा जाता है,उसके बीच में न्यूक्लियस है,उसके चारों तरफ इलेक्ट्रॉन परिक्रमा करते हैं,उसके बीच में न्यूट्रॉन है और प्रोटोन है। भगवान भी गीता में यही कहते है कि हे अर्जुन! तीन गुणों से यह सारा संसार बना है। इस सारे संसार के अंदर फंडामेंटल पार्टिकल्स हैं। वह क्या है- इलेक्ट्रॉन,प्रोटॉन,न्यूट्रॉन। इसी के वृद्धि और कमी होने से सारे आपके एलिमेंट्स बनते चले जाते हैं। प्रारंभ में हाइड्रोजन बना हाइड्रोजन के एच में एक और जोड़ा तो हीलियम बन गया। आप जैसे-जैसे जोड़ते चले जाएंगे,अनेक तत्वों की रचना होती चली जाएगी। ऐसे ही सबका आधारभूत जो हमारे अंदर नाम है। जिसको कहा है कि वह आदि नाम है,उस आदि नाम का लोग गुप्त जाप करते हैं,उसे कोई बिरला ही समझता है। इसलिए संतो के पास जाकर उस आदि नाम को जानना चाहिए। उसके सिमरन से ही हमारा कल्याण संभव है। सम्मेलन को संबोधित करते हुए विभुजी महाराज ने कहा कि आज समाज में विकृति आने से हम मानव होते हुए भी मानवता को नहीं समझते हैं। मानवता के प्रेम को करुणा को नहीं समझते और धर्म को लेकर विवाद करते हैं,तो धर्म के मूल को तो किसी ने समझा ही नहीं,इसको समझने के लिए हमें संतों के शरण में आना होगा तभी हम धर्म की मूल भावना को समझेंगे तब ही समाज में मानवता विकसित होगी। मंच संचालन महात्मा हरिसंतोषानंद ने किया।
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