साहित्य संस्थान के पूर्व निदेशक और इनटेक उदयपुर चैप्टर के समन्वयक डॉ.ललित पाण्डेय की श्रद्धांजलि सभा में बोलेे शिक्षाविद्
उदयपुर/हरिद्वार। साहित्य संस्थान के पूर्व निदेशक वरिष्ठ पुराविद डॉ.ललित पाण्डेय को महज इतिहासविद और पुराविद कहना उचित नहीं हो सकता,वे मार्गदर्शक थे और सबसे महत्वपूर्ण वे ऐसे शिक्षक थे जो सभी में हरवक्त कुछ न कुछ सीखने,समझने,गहराई से अध्ययन करने की जिज्ञासा जगाते थे। नगर स्थित विज्ञान समिति सभागार में उनकी स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में शिक्षाविदों,इतिहासविदों,पुरातत्वविदों,शोधार्थियों सहित विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों ने अपनी शोक संवेदनाओं में व्यक्त किए। सभी ने कहा कि उनकी शोधदृष्टि और शोध से प्राप्त नवीन जानकारी को सामान्यजन तक पहुंचाने का संकल्प दृढ़ था। उनका प्रयास रहता था कि आमजन भी अपने इतिहास की जानकारी के नवीन तथ्यों से परिचित रह सकें। उनके कई शोध ऐसे रहे जिन्होंने प्राचीन इतिहास को और भी स्पष्टता की ओर ले जाने का कार्य किया। आज वे इतिहास के पन्नों में अंकित हो गए। उन्हें शोध का सुनहरा हस्ताक्षर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे सेवानिवृत्ति के बाद भी शोध के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहे और अंतिम सांस लेने तक भी वे इनटेक के उदयपुर चौप्टर के कन्वीनर रहते हुए शहर के पुरावैभव के संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे थे। श्रद्धांजलि सभा में साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो.जीवन सिंह खरकवाल ने दिवंगत डॉ.पाण्डेय का जीवन वृत्त प्रस्तुत करते हुए कहा कि डॉ.पाण्डेय ने जर्नादन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के रजिस्ट्रार व साहित्य संस्थान के निदेशक रहने के साथ देश के कई विश्वविद्यालयों को इतिहास और पुरातत्व विषय को लेकर उल्लेखनीय मार्गदर्शन दिया। गुरुकुल कांगड़ी (समविश्वविद्यालय) हरिद्वार के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व के छात्र रहे। डॉ. पाण्डेय ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से प्रोफेसर विनोद चंद्र सिन्हा के निर्देशन में मौर्य काल में नौकरशाही विषय पर पीएचडी की। सुप्रसिद्ध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली में बौद्ध धर्म के अंतरराष्ट्रीय विद्वान प्रोफेसर राम राहुल के निर्देशन में 1वर्ष तक शोध कार्य किया। इसके बाद गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार में व्याख्याता के रूप में सेवाएं दीं।
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