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उत्सर्ग को उत्सव की तरह मनाना भारतीय परंपरा: डॉ.चिन्मय पण्ड्या

 देसंविवि में आयोजित देवसंस्कृति व्याख्यान माला


हरिद्वार। दीपावली से पूर्व देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में शांति एवं सद्भाव विषय पर देव  संस्कृति व्याख्यान माला का आयोजन हुआ। व्याख्यानमाला का शुभारंभ देसंविवि के कुलपति शरद पारधी,प्रतिकुलपति डॉ.चिन्मय पण्ड्या,मनु गौड़,अशोक गोयल व शांतिकुंज व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया। व्याख्यानमाला का शुभारंभ करते हुए देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ.चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति में उत्सर्ग को उत्सव की तरह मनाने की परंपरा रही है। ऋषि मुनि अपने त्याग,बलिदान को उत्सव की तरह मनाते रहे हैं। विश्वामित्र,राजा बलि आदि प्रत्यक्ष उदारहण है। ऋषियों ने शांति व सद्भाव का जो संदेश दिया,उसे सौभाग्य के रूप में स्वीकारने से मानव महामानव बन जाता है। संयुक्त राष्ट्र संगठन यूएनओ द्वारा विश्व शांति के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आध्यात्मिक मंच के निदेशक डॉ.पण्ड्या ने कहा कि भारत ने युनाइटेड नेशन सहित सभी स्थानों पर शांति व सद्भाव के लिए जो कदम उठाया है,उठा रहा है,यही महानता के गुण हैं। युवा आइकान डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि जिस तरह ज्ञान को न किसी शस्त्र व अस्त्र से काटा जा सकता है,उसी तरह हमारी सनातन संस्कृति को न कोई मिटा सकता है और न ही कोई इसकी गौरव गरिमा को ठेस पहुंचा सकता है। विशिष्ट अतिथि उत्तराखण्ड यूसीसी ड्राफ्ट कमिटी के सदस्य व सामाजिक कार्यकर्त्ता मनु गौड़ ने कहा कि भारत विश्व को शांति व सद्भाव देने वाला देश है। भारत सामर्थ्यवान बनने की दिशा में अग्रसर है। सामर्थ्यवान व्यक्ति व देश ही अन्यों को शांति व सद्भाव देने के लिए उपयुक्त है। विशिष्ट अतिथि एस्सेल वर्ल्ड लेजर प्रा.लि.के अध्यक्ष अशोक गोयल ने शांति व सद्भाव देने वाले भारत के प्राचीन इतिहास व विभिन्न सम्प्रदायों के जन्म पर विस्तृत जानकारी दी। कुलपति शरद पारधी ने आत्म समीक्षा व आत्म निर्माण के लिए प्रेरित करते हुए आभार व्यक्त किया।समापन से पूर्व मंचासीन अतिथियों ने विभिन्न पत्रिकाओं का विमोचन किया। पश्चात युवा आइकान डॉ चिन्मय पण्ड्या ने अतिथियों को स्मृति चिह्न,युग साहित्य आदि भेंटकर सम्मानित किया। इस अवसर पर शांतिकुंज व देसंविवि परिवार सहित विभिन्न प्रशिक्षण सत्रों में आये साधकगण उपस्थित रहे।


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