हरिद्वार। बसंत विहार कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन की कथा श्रवण कराते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया वैसे तो कार्तिक का पूरा महीना भगवान विष्णु को समर्पित है। परंतु कार्तिक माह शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को अक्षय नवमी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन का पूजन अक्षय फल प्रदान करता है। अक्षय फल का तात्पर्य है जो फल कभी नाश न हो। अक्षय नवमी के साथ इसे आंवला नवमी कहकर भी संबोधित किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी धरती पर निवास करने के लिए आईं। इस दौरान मां लक्ष्मी के मन में भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करनी की इच्छा जागृत हुई। लेकिन दोनों की एक साथ पूजा करने के लिए उनको कोई उचित उपाय नहीं सूझ रहा था। क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय मानी जाती है तो शंकरजी को बेलपत्र प्रिय है। ऐसे में मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पर आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु और शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। भगवान शिव और विष्णु ने मां लक्ष्मी से वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने वरदान मांगा कि आज के दिन जो भी स्त्री आंवले की वृक्ष की पूजा करें उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाए। तभी से आंवला नवमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई। शास्त्री ने बताया कई लोगों का मानना है कि इस बार 10नवम्बर इतवार के दिन आंवला नवमी पड़ रही है। इतवार के दिन आंवले का पूजन नहीं किया जाता है। परंतु शास्त्री ने बताया जो नित्य आने वाले व्रत एवं त्योहार होते हैं। उनमें दिन बार का भेद नहीं किया जाता है। बिना भेद करें सभी लोग हर्षाेल्लास के साथ आंवला नवमी का पूजन करें और भगवान से प्रार्थना करें की सब में सद्भाव हो। कथा में मुख्य यजमान,डा.हर्षित गोयल,डा.स्वाति गोयल,संजीव गोयल,राजीव गोयल,संजय दर्गन अंशुल, प्रीति गोयल,वीना धवन,शांति दर्गन,पिंकी दर्गन,स्वेता,संगम,सुमित,पंडित गणेश कोठारी,रंजना, अंजू पांधी,मुकेश दर्गन, प्रमोद, लवी सचदेवा आदि ने भागवत पूजन किया।
हरिद्वार। बसंत विहार कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन की कथा श्रवण कराते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया वैसे तो कार्तिक का पूरा महीना भगवान विष्णु को समर्पित है। परंतु कार्तिक माह शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को अक्षय नवमी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन का पूजन अक्षय फल प्रदान करता है। अक्षय फल का तात्पर्य है जो फल कभी नाश न हो। अक्षय नवमी के साथ इसे आंवला नवमी कहकर भी संबोधित किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी धरती पर निवास करने के लिए आईं। इस दौरान मां लक्ष्मी के मन में भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करनी की इच्छा जागृत हुई। लेकिन दोनों की एक साथ पूजा करने के लिए उनको कोई उचित उपाय नहीं सूझ रहा था। क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय मानी जाती है तो शंकरजी को बेलपत्र प्रिय है। ऐसे में मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पर आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु और शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। भगवान शिव और विष्णु ने मां लक्ष्मी से वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने वरदान मांगा कि आज के दिन जो भी स्त्री आंवले की वृक्ष की पूजा करें उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाए। तभी से आंवला नवमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई। शास्त्री ने बताया कई लोगों का मानना है कि इस बार 10नवम्बर इतवार के दिन आंवला नवमी पड़ रही है। इतवार के दिन आंवले का पूजन नहीं किया जाता है। परंतु शास्त्री ने बताया जो नित्य आने वाले व्रत एवं त्योहार होते हैं। उनमें दिन बार का भेद नहीं किया जाता है। बिना भेद करें सभी लोग हर्षाेल्लास के साथ आंवला नवमी का पूजन करें और भगवान से प्रार्थना करें की सब में सद्भाव हो। कथा में मुख्य यजमान,डा.हर्षित गोयल,डा.स्वाति गोयल,संजीव गोयल,राजीव गोयल,संजय दर्गन अंशुल, प्रीति गोयल,वीना धवन,शांति दर्गन,पिंकी दर्गन,स्वेता,संगम,सुमित,पंडित गणेश कोठारी,रंजना, अंजू पांधी,मुकेश दर्गन, प्रमोद, लवी सचदेवा आदि ने भागवत पूजन किया।
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