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निरंतर आगे बढ़ते रहने का का नाम ही जीवन है- प्रो.प्रभात कुमार

 


हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय में स्वामी श्रद्धानंद शिक्षकेत्तर कर्मचारी यूनियन द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास,संस्कृति एवं पुरातत्व के सभागार कक्ष में गुरुप्रसाद का विदाई समारोह मनाया गया। स्वामी श्रद्धानंद शिक्षकेत्तर कर्मचारी यूनियन के संरक्षक व् विदाई समारोह के मुख्य अतिथि प्रो.प्रभात कुमार ने कहा कि मुझे हमेशा ही लगता था कि हम एक परिवार की तरह हमेशा साथ रहेंगे,परंतु निरंतर आगे बढ़ते रहने का का नाम ही जीवन है। हमें कुछ पाने के लिए हमेशा ही कुछ न कुछ पीछे छोड़ना होता है। वे आज हमसे विदा लेकर अपने करियर को बेहतर रूप से प्रतिष्ठित करने के लिए आगे की यात्रा करने करने जा रहे हैं। वित्ताधिकारी प्रो.देवेन्द्र कुमार ने कहा कि गुरुप्रसाद अद्भुत प्रतिभा के धनी व्यक्ति है। उनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक और उच्च कोटी का है,हमेशा वह अपने जूनियर और सीनियर की मदद करते या उनसे हंसी-मज़ाक करते नज़र आते थे। मुझे लगता है कि वह आगे भी ऐसे ही करते रहेंगे। इसी के साथ मैं उनके स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। स्वामी श्रद्धानंद शिक्षकेत्तर कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष दिनेश कुमार ने कहा कि वरिष्टतम साथी गुरुप्रसाद की जीवंत ऊर्जा और समर्पण ने एक अमिट छाप छोड़ी है, और हम आपके साथ साझा की गई यादों के लिए आभारी हैं। यह विदाई संदेश एक अनुस्मारक है कि भले ही आप नए क्षितिज पर कदम रखें,लेकिन आपके लिए हमेशा हमारे दिलों में एक विशेष स्थान रहेगा। महामंत्री दीपक आनंद ने कहा कि हमें आपको जाते हुए देखकर दुख हो रहा है ,लेकिन हम उस समय के लिए आभारी हैंजो हमने साथ में बिताया है। आप एक अविश्वसनीय सहकर्मी और एक अच्छे दोस्त रहे हैं,और हम आपके निरोग जीवन व सफलता की कामना करते हैं। इस अवसर पर गुरुप्रसाद ने कहा कि वे पूरे गुरुकुल परिवार के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जिन्होंने मुझे विकसित होने के लिए सर्वाेत्तम संसाधन और अवसर प्रदान किए हैं। अलविदा कहते हुए विभिन्न पदों पर कार्यरत सभी अधिकारियों व साथियों को उनकी सहायता और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ। इस अवसर पर सोनू कुमार,धर्मेंद्र बालियान,विजेंद्र राठी,राजकुमार,विपन,ब्रजपाल,रमेश,अरविंद,विजय प्रताप,अमित धीमान,गुरप्रीत,दिनेश,वीरेंदर माली,जीतेन्द्र नेगी,नीरज आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन सत्यदेव ने किया।


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