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संत रविदास ने संसार को भेदभाव की भावना से ऊपर उठ मानवता का बोध कराया


हरिद्वार। राष्ट्रीय मानव अधिकार संरक्षण समिति की पूर्व राष्ट्रीय सचिव रेखा नेगी ने कहा कि भारत के मध्ययुगीन कवियों में गुरु रविदास को विशेष स्थान प्राप्त है। इन्होंने अपने वचनों के माध्यम से संसार को भेदभाव की भावना से ऊपर उठ मानवता का बोध कराया। गुरु रविदास ने अपना जीवन समाज को यह उपदेश देने में लगा दिया,धर्म के नाम पर हिंसा करना निरर्थक है।संत रविदास सामाजिक संत थे।वह तब जन्में जब समाज में जातिगत भेदभाव बहुत ज्यादा था।ऐसे में उनके द्वारा दिया ज्ञान,इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। 15वीं सदी में जन्में रविदास जी ने भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। जिसका उल्लेख उनके द्वारा लिखित काव्यों में साक्षात् मिलता है। संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी नगर में मां कालसा देवी और पिता संतोख दास के यहां हुआ था। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेलजोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए संतों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।ऐसे संतों में रैदास का नाम अग्रगण्य है।लोगों की नजरों में उनकी छवि एक मसीहा के रूप में थी।अपने जीवन में,संत रविदास ने आध्यात्मिक ज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया,प्रेम,समानता और भक्ति को शाश्वत सिद्धांतों के रूप में बल दिया जो पीढ़ियों तक गूंजते रहे।उन्होंने देश में फैले ऊंच-नीच के भेदभाव और जात-पात की बुराइयों को दूर करते हुए भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बाधने का काम किया था। हमें भी उनके बताए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए।


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