ऋषिकेश। नववर्ष सकारात्मक ऊर्जा,समृद्धि और विजय का प्रतीक है। यह दिन धर्म,संस्कृति और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान ब्रह्मा जी ने इसी दिन ब्रह्मांड की रचना की थी,इसलिए इसे जीवन की नई शुरुआत और संभावनाओं का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व संतुलन और समरसता का प्रतीक भी है तथा नए कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।यह जीवन,आशा और सकारात्मक ऊर्जा का उत्सव है। परमार्थ निकेतन परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी को विक्रम संवत 2082 और चौत्र नवरात्रि की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति,सभ्यता और परंपराएँ हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं। यह समय आत्मविश्लेषण,आत्मसुधार और आध्यात्मिक उत्थान का अवसर प्रदान करता है। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति में संवत्सर को नवजीवन और नवीनता का प्रतीक माना गया है। यह हमें आत्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने का अवसर देता है। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से ही माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना आरंभ होती है,जिससे जीवन में शुद्धि,शक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है। स्वामी जी ने विशेष रूप से युवाओं का आह्वान किया कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को आत्मसात करें और समाज में नैतिक मूल्यों को स्थापित करने का संकल्प लें। विक्रम संवत 2082 का यह शुभारंभ न केवल एक नववर्ष की शुरुआत है,बल्कि यह आत्म शुद्धि,सेवा और समाज कल्याण के संकल्प की भी प्रेरणा देता है। सभी इस अवसर पर यह संकल्प लें कि हम अपने जीवन को श्रेष्ठ,पवित्र और सार्थक बनाएँगे और समस्त मानवता के कल्याण के लिए योगदान प्रदान करेंगे। हमारी आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी प्रभावों के कारण कई भारतीय पर्व और परंपराएँ धुंधली होती जा रही हैं।ऐसे में,नव संवत्सर को उल्लासपूर्वक मनाना न केवल हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है,बल्कि हमारे बच्चों को भी हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराता है।
ऋषिकेश। नववर्ष सकारात्मक ऊर्जा,समृद्धि और विजय का प्रतीक है। यह दिन धर्म,संस्कृति और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान ब्रह्मा जी ने इसी दिन ब्रह्मांड की रचना की थी,इसलिए इसे जीवन की नई शुरुआत और संभावनाओं का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व संतुलन और समरसता का प्रतीक भी है तथा नए कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।यह जीवन,आशा और सकारात्मक ऊर्जा का उत्सव है। परमार्थ निकेतन परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी को विक्रम संवत 2082 और चौत्र नवरात्रि की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति,सभ्यता और परंपराएँ हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं। यह समय आत्मविश्लेषण,आत्मसुधार और आध्यात्मिक उत्थान का अवसर प्रदान करता है। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति में संवत्सर को नवजीवन और नवीनता का प्रतीक माना गया है। यह हमें आत्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने का अवसर देता है। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से ही माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना आरंभ होती है,जिससे जीवन में शुद्धि,शक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है। स्वामी जी ने विशेष रूप से युवाओं का आह्वान किया कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को आत्मसात करें और समाज में नैतिक मूल्यों को स्थापित करने का संकल्प लें। विक्रम संवत 2082 का यह शुभारंभ न केवल एक नववर्ष की शुरुआत है,बल्कि यह आत्म शुद्धि,सेवा और समाज कल्याण के संकल्प की भी प्रेरणा देता है। सभी इस अवसर पर यह संकल्प लें कि हम अपने जीवन को श्रेष्ठ,पवित्र और सार्थक बनाएँगे और समस्त मानवता के कल्याण के लिए योगदान प्रदान करेंगे। हमारी आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी प्रभावों के कारण कई भारतीय पर्व और परंपराएँ धुंधली होती जा रही हैं।ऐसे में,नव संवत्सर को उल्लासपूर्वक मनाना न केवल हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है,बल्कि हमारे बच्चों को भी हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराता है।
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